धर्म-कर्म

जिस भक्त को कोर्ट से भी नहीं मिलता इंसाफ, उसे मां चंडिका देती हैं न्याय!

उत्तराखंड (Uttarakhand) के पिथौरागढ़ (Pithoragarh) जिले में मां चंडिका देवी (Mother Chandika Devi) का मंदिर स्थित है। चंडिका देवी को मां दुर्गा (Maa Durga) का ही रूप माना जाता है। मार्कण्डेय पुराण के दुर्गा माहात्म्य में इनके कृत्यों एवं स्वरूप का वर्णन किया गया है। मां चंडिका को न्याय की देवी भी कहा जाता है।

उत्तराखंड (Uttarakhand) के पिथौरागढ़ (Pithoragarh) जिले में मां चंडिका देवी (Mother Chandika Devi) का मंदिर स्थित है। चंडिका देवी को मां दुर्गा (Maa Durga) का ही रूप माना जाता है। मार्कण्डेय पुराण के दुर्गा माहात्म्य में इनके कृत्यों एवं स्वरूप का वर्णन किया गया है। मां चंडिका को न्याय की देवी भी कहा जाता है। वह अपनी शरण में आने वाले सभी भक्तों की इंसाफ की मनोकामना को पूरा करती हैं। अगर किसी को न्यायालय से इंसाफ नहीं मिल पाता तो वह यहां आकर देवी से गुहार लगाता है और देवी अपने भक्तजनों को न्याय प्रदान करती है।

माना जाता है कि करीब 400 साल पहले मां चंडिका का मंदिर बुंगाछीना के हरदेव में था। इसके पास ही मां महानंदा देवी का मंदिर है। मां चंडिका और महानंदा देवी आपस में बहनें हैं। चंडिका के मांसाहार प्रवृत्ति के चलते मां नंदा ने उन्हें यह स्थान छोड़ने का आदेश दिया था। जिसके बाद चंडिका उस स्थान को छोड़कर रामगंगा नदी में बहकर यहां पहुंचीं, जहां आज चंडिका घाट मंदिर है।

बताया जाता है कि उस समय गांव वालों ने मां चंडिका की मूर्ति को नदी से निकालकर एक साफ-सुथरे स्थान पर रख दिया था। जिसके बाद वह मूर्ति उस स्थान से नहीं हिलाई जा सकी। देवी ने गांव के रहने वाले एक शख्स को सपने में दर्शन दिए और कहा कि वह इसी स्थान पर रहेंगी। तब से माता चंडिका यहीं पर विराजमान हैं।

यहां एक भगवान शिव का भी मंदिर है। यहां उत्तरायणी मकर संक्रांति पर मेले का आयोजन होता है। यहां बलि पूजा का भी विधान है। देवी पुराण में उल्लेख है कि महाभारत के रचयिता महर्षि वेदव्यास जी ने यहां हवन व तप किया था।

यहां रामगंगा नदी की कल-कल, छल-छल की मधुर ध्वनि के मध्य श्रद्धालुजन देवी का पूजन करके स्वयं को धन्य समझते हैं। प्रकृति की सुंदरता के बीच यह मनोहारी स्थल भक्तों को सदैव आकर्षित करता है। माना जाता है कि देवी अपने सच्चे भक्तों की हर मनोकामना पूरी करती हैं।