धर्म-कर्म

जानें! कैसे हुआ राधा जी का जन्म और पहली बार कब मिली श्री कृष्ण से?

वैसे तो राधा जी (Radha Rani) के जन्म के बारे में अनेक कथाएं शास्त्रों में आती हैं, लेकिन ऐसा माना जाता है कि आज से करीब पांच हजार दो सौ वर्ष पूर्व मथुरा जिले के गोकुल-महावन कस्बे के निकट रावल गांव में भाद्र पद मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि, अनुराधा नक्षत्र, मध्यान्ह काल 12 बजे और सोमवार के दिन पिता वृषभानु और माता कीर्तिदा की पुत्री के रूप में श्री राधिका जी ने जन्म लिया था।

वैसे तो राधा जी (Radha Rani) के जन्म के बारे में अनेक कथाएं शास्त्रों में आती हैं, लेकिन ऐसा माना जाता है कि आज से करीब पांच हजार दो सौ वर्ष पूर्व मथुरा जिले के गोकुल-महावन कस्बे के निकट रावल गांव में भाद्र पद मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि, अनुराधा नक्षत्र, मध्यान्ह काल 12 बजे और सोमवार के दिन पिता वृषभानु और माता कीर्तिदा की पुत्री के रूप में श्री राधिका जी ने जन्म लिया था। इसके कुछ दिन बाद उनके पिता महाराज वृषभानु जी ने वृंदावन में ही व्रषभानु पुरा गांव बसाया, जिसे आज बरसाना के नाम से जाना जाता है। वर्तमान में यही बरसाना धाम राधा जी की गृह भूमि है। यही वह पवित्र भूमि है, जहां श्री राधा जी ब्रज की अधीश्वरी के रुप में पूजी जाती है।

स्वेच्छा से श्री राधा जी प्रकट हुईं
राधा रानी के जन्म के संबंध में कहा जाता है कि राधिका जी ने भगवान श्री कृष्ण की भांति अपनी माता के पेट से जन्म नहीं लिया बल्कि उनकी माता ने अपने गर्भ में केवल “वायु” को ही धारण किया हुआ था। तब देवी योग माया कि प्रेरणा से उन्होंने केवल वायु को ही जन्म दिया। परन्तु वहां स्वेच्छा से श्री राधा जी प्रकट हो गई। राधा रानी जी कलिंदजा कूलवर्ती निकुंज प्रदेश के एक सुन्दर मंदिर में अवतरित हुई थी। जिस समय श्री राधिका जी का जन्म हुआ उस समय सम्पूर्ण दिशाए निर्मल हो उठी। तब महाराज वृषभानु और महारानी कीर्तिदा ने अपनी पुत्री राधिका जी के कल्याण की कामना से दो लाख उत्तम गौए ब्राह्मणों को दान की।

वृंदावन का महत्व
राधिका जी के जन्म की दूसरी कथा यह है कि एक दिन जब वृषभानु जी सरोवर के पास से गुजर रहे थे, तब उन्हें एक बालिका कमल के फूल पर तैरती हुई मिली, जिसे उन्होंने पुत्री के रूप में अपना लिया। तब राधिका जी का अभिषेक किया गया। जिस समय राधिका जी का अभिषेक किया गया, उस समय सभी देवी-देवताओं ने वहां पुष्प वर्षा की और राधा जी को स्वर्ग के सिंहासन पर बिठाया। लेकिन स्वर्ग के सिंहासन पर आसित करते समय सभी देवताओं के मन में ये विचार आया कि राधा रानी तो सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड की अधीश्वरी देवी हैं तो फिर उन्हें केवल 16 कोस में फैले वृंदावन का ही आधिपत्य सौपनें की क्या आवश्यकता है। फिर काफी विचार-विमर्श के बाद यह निर्णय लिया गया कि बैकुंठ से भी कई गुना अधिक महत्व तो मथुरा का होगा और मथुरा से भी अधिक महत्व वृंदावन का होगा।

श्रीकृष्ण (Shri Krishna) से बडी थीं राधा रानी
राधा जी आयु में श्रीकृष्ण से ग्यारह माह बडी थीं। लेकिन वृषभानु जी और कीर्ति देवी को ये बात जल्द ही पता चल गई कि श्री किशोरी जी ने अपने प्राकट्य से ही अपनी आँखे नहीं खोली है। इस बात से उन्हें बड़ा दुःख हुआ लेकिन कुछ समय पश्चात जब नन्द बाबा कि पत्नी यशोदा जी गोकुल से अपने लाडले कृष्ण के साथ वृषभानु जी के घर आईं तब वृषभानु जी और कीर्ति जी ने उनका स्वागत किया। उस वक्त यशोदा जी कान्हा जी को गोद में लिए राधाजी के पास आती है। फिर जैसे ही श्री कृष्ण और राधा आमने-सामने आते है तब राधा जी पहली बार अपने प्राण प्रिय श्री कृष्ण को देखने के लिए अपनी आँखे खोलती है। वे एक टक कृष्ण जी को देखती ही रहती हैं। अपनी प्राण प्रिय राधिका को अपने सामने एक सुन्दर बालिका के रूप में देखकर श्री कृष्ण स्वयं अत्यधिक आनंदित होते है।

एक बार जब राधाजी से श्री कृष्ण ने पूछा कि हमारे साहित्य में तुम्हारी क्या भूमिका होगी तो राधाजी ने कहा-मुझे कोई भूमिका नहीं चाहिए मैं तो सदा आपके पीछे और साथ ही रहूंगी।

“श्री राधा सर्वेश्वरी, रसिकेश्वर धनश्याम।
करहूँ निरंतर बास मै, श्री वृन्दावन धाम।।”