धर्म-कर्म

कैसे हुई भगवान शिव के तीसरे नेत्र की उत्पत्ति?

भगवान शिव (Bhagwan Shiva) के तीसरे नेत्र के बारे में तो सभी जानते हैं कि जब भोलेनाथ (Bholenath) ने अपना तीसरा नेत्र खोला है तो सृष्टि का नाश हो गया है या यह भी कहा जा सकता है कि भगवान शिव अपना तीसरा नेत्र तभी खोलते हैं जब वे बहुत क्रोधित होते हैं। भोलेनाथ के […]

भगवान शिव (Bhagwan Shiva) के तीसरे नेत्र के बारे में तो सभी जानते हैं कि जब भोलेनाथ (Bholenath) ने अपना तीसरा नेत्र खोला है तो सृष्टि का नाश हो गया है या यह भी कहा जा सकता है कि भगवान शिव अपना तीसरा नेत्र तभी खोलते हैं जब वे बहुत क्रोधित होते हैं। भोलेनाथ के तीसरे नेत्र को उनकी दिव्य दृष्टि भी कहा जाता है। यह भी माना जाता है कि भगवान शंकर को अपने तीसरे नेत्र से ज्ञान की प्राप्ति होती है।

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कैसे हुई भगवान शिव के तीसरे नेत्र की उत्पत्ति
पौराणिक कथा में उल्लेख है कि एक बार नारद भगवान शिव और माता पार्वती के बीच हुई बातचीत के बारे में बताते हैं। इस बातचीत में छिपा है तीन आंखों का राज।

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नारद जी बताते हैं कि एक बार भगवान शिव हिमालय पर्वत पर एक सभा कर रहे थे, जिसमें सभी देवता, ऋषि और ज्ञानी मौजूद थे। तब माता पार्वती उस सभा में आईं और अपने मनोरंजन के लिए अपने दोनों हाथों से भगवान शिव की दोनों आंखों को ढक दिया। माता पार्वती ने जैसे ही भगवान शिव की आंखों को ढका, संसार में अंधेरा छा गया। ऐसा लगने लगा जैसे सूर्य देव का कोई अस्तित्व ही नहीं है। इसके बाद धरती पर मौजूद सभी जीव-जंतुओं में खलबली मच गई।

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संसार की ये दशा भगवान शिव से देखी नहीं गई और उन्होंने अपने माथे पर एक ज्योतिपुंज प्रकट किया, जो भगवान शिव की तीसरी आंख बनी। बाद में माता पार्वती के पूछने पर भगवान शिव ने उनसे बताया कि अगर वो ऐसा नहीं करते तो संसार का नाश हो जाता, क्योंकि उनकी आंखें ही जगत की पालनहार हैं।

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