महाराजा सवाई जयसिंह जी ने जयपुर (Jaipur) को बसाने से पहले नगर की सुख समृद्धि के लिए चारों दिशाओं में विभिन्न भगवान को विराजमान किया था। जिसके तहत पूरब में भगवान सूर्यदेव (Bhagwan Suryadev), पश्चिम में चांदपोल स्थित हनुमान जी (Hanumanji) , दक्षिण में मोतीडूंगरी के गणेश जी (Ganeshji) तथा उत्तर में गड गणेश जी को विराजमान किया था। सूर्यवंशी रहे जयपुर के राजा ने जयपुर की स्थापना के समय से ही गलता घात पर सूर्य मंदिर (Suryadev Temple) का निर्माण मयमूर्ति से करवाया था।सूर्यवंशी होने के कारण उन्होंने सर्वप्रथम भगवान सूर्य का मंदिर निर्मित कराया गया।
भगवान राम भी सूर्यवंशी थे, उसी को ध्यान में रखते हुए रामगंज बाजार, सूर्यपोल दरवाजा और सूर्यपोल बाजार नाम दिए गये। इसके अतिरिक्त भगवान राम के ही नाम पर चौपड़ का नाम भी रामगंज चौपड़ दिया गया। सूर्योदय के साथ भगवान सूर्यदेव का मंदिर (Suryadev Mandir) दर्शन के लिए खुलता है और सूर्यास्त के पूर्व आरती करने के साथ ही पट बंद कर दिए जाते है।
इस मंदिर की विशेषता यह है कि सूर्यमंदिर में वीर बजरंगी का मंदिर विद्यमान है। सूर्य शिष्य हनुमान जी का मंदिर सूर्यदेव की प्रतिमा के सामने दक्षिण की ओर मुख करते हुए स्थित है। यह एक ऐसा अनूठा मंदिर है, जहां जिसमें गुरु और शिष्य एकसाथ विद्यमान हैं। यह मंदिर पुरातत्व विभाग से सम्बन्धित होने के कारण इस पर पुरातत्व विभाग का सूचनापट लगा हुआ है।
इस मंदिर में जयपुर की खुशहाली के लिए 12 राशियों का ज्योतिष के आधार पर स्थान (खिड़की) बनाया गया है, जिससे कि उनकी नजर जयपुर पर बनी रहे और वे अपनी चाल के अनुसार ही खुशहाली लाते रहे।
मंदिर में सेवा पूजा के लिए पानी की कमी न हो, इसे ध्यान में रखते हुए निर्माण कर्ताओं ने धरती के नीचे पानी का टैंक बनाया है, इससे बरसाती पानी यहां भरा रहता है। जिससे वर्ष पर्यन्त पानी की कमी नहीं होती है। लेकिन वर्तमान में देख-रेख के अभाव में यह पानी का टैंक जर्जर अवस्था में है | मंदिर प्रांगण में तुलसी दल का थाना बना हुआ है।
इस सूर्य मंदिर में प्रवेश करते ही सामने भगवान सूर्यदेव का झूला दिखाई देता है और उसके साथ ही लगता हुआ सूर्यदेव का मुख्य मंदिर है। जिसमें सूर्य देव के साथ उनकी पत्नी संज्ञा देवी की प्रतिमा भी विराजमान है। संज्ञा देवी की छाया से ही यम, यमुना और शनिदेव उत्पन्न हुए थे। पहाड़ी पर स्थित यह मंदिर दूर से श्रद्धालुओं को अपनी ओर आकर्षित करता है।
मंदिर पर लहराता ध्वज और उसका स्वर्णिम शिखर अपनी अलग ही छटा बिखेरता है। स्नान करने जाने वाले भक्त जो सूर्यपोल से होते हुए जाते है, मंदिर में दर्शनों के लिए अवश्य आते है। सूर्यदेव के दर्शन के अभिलाषी भक्त यहां आकर उनके दर्शन कर सकते है।