अब्दुल अपनी दुकान पर सिर पर हाथ रखकर, सुबक-सुबककर रो रहा था !.
मैंने पूछ लिया:- क्या हुआ अब्दुल??.. क्यों ऐसे बैठे हो ??..
अब्दुल:- मत पूछिए भाईजान !. कल जोश में आकर मप्र खरगोन की “सेकुलर बस्ती” से गुजर रही रामनवमी शोभायात्रा (Ramnavami Shobha Yatra) पर जमकर पत्थर चला दिए !. आगजनी की !. मंदिर में तोड़फोड़ की ! सोचा “लोकतंत्र” है ! सब चलता है !.
लेकिन “मप्र के मामा” ने “पत्थर” का जवाब “बुलडोजर” (Bulldozer) से दे दिया !. ऐसा कहकर अब्दुल और जोर से सुबक-सुबककर रोने लगा !.
मैं:- अरे !. अब्दुल !.. ऐसे कैसे दे दिया ! तुमने बोला नही “ये देश मेरा भी हैं किसी के बाप का थोड़े ही हैं “.
अब्दुल (ऐसा सुन जोर से चिल्लाया):- भाईजान धीरे बोलो कहीं मामा सुन न ले !!.. अभी तो मकान पर बुलडोजर चला हैं !.. कहीं बस्ती पर न चल जाए !. सबकुछ “अवैध” हैं !! बाप का कुछ नही हैं !!.. ऐसा कहकर अब्दुल फफक-फफककर रो पड़ा !
इसी बीच अब्दुल के नमाझ का वक्त हो गया !. लेकिन हर बार की तरह इस बार अब्दुल मज्जिद की और रवाना नही हुआ !.
मैं:- क्या बात हैं अब्दुल !!. आज मज्जिद नही जा रहे ??..
ये सुन अब्दुल दहाड़े मारकर रोने लगा और बोला !.
नही भाईजान.. रैली पर पत्थर बरसाने की शुरुआत वही से हुई थी !. उसी से भड़ककर ही ये सब कांड हो गया !. क्या पता दोबारा भड़क गया तो, रही-सही ये पंचर की दुकान पर भी “बुलडोजर” चल जाएगा !!.
मैं:- अब्दुल !!.. तो फिर इंसानियत के ‘महीने’, विश्व कल्याण, भाईचारा, गंगा-जमुनी तहज़ीब, अमन-चैन का क्या होगा ??… ये सब खातिर ही तो तुम नमाझ पढ़ने मज्जिद जाते हो ना !
अब्दुल खिसियाते हुए दोनो हाथ जोड़कर ग़ुस्से में चिल्लाया !!..
ये सब अल तकिय्ये हैं हमारे.. तुम लोग कुछ समझते क्यों नही ??..
खैर अब्दुल कलाम की खिस-खिसियाहट देखकर मैं मुस्कुराते हुए ये सोचते हुए वहाँ से निकल गया कि,
जिस संविधान को ढाल बनाकर अब्दुल लोकतंत्र को कमजोर करता था !.
आज उसी संविधान का सही प्रयोग कर “मप्र के मामा” ने लोकतंत्र मजबूत कर दिया !.