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Chaiti Chhath 2022: 7 अप्रैल को अस्ताचलगामी सूर्य को पहला अर्घ्य….

अटूट जन आस्था के महापर्व चैती छठ (Chaiti Chhath) का अनुष्ठान 5 अप्रैल को नहाय खाय (Nahay Khay) के साथ प्रारंभ हुआ है। 6 अप्रैल को व्रतियों ने खरना का अनुष्ठान किया 7 अप्रैल को डूबते सूर्य को अर्घ्य देने के साथ इस महापर्व का तीसरा दिन व्यतीत होगा 8 अप्रैल को उदमान सूर्य को […]

अटूट जन आस्था के महापर्व चैती छठ (Chaiti Chhath) का अनुष्ठान 5 अप्रैल को नहाय खाय (Nahay Khay) के साथ प्रारंभ हुआ है। 6 अप्रैल को व्रतियों ने खरना का अनुष्ठान किया 7 अप्रैल को डूबते सूर्य को अर्घ्य देने के साथ इस महापर्व का तीसरा दिन व्यतीत होगा 8 अप्रैल को उदमान सूर्य को अर्घ्य देने के साथ इस महापर्व का समापन होगा।

छठ व्रत (Chhath Vrat) सूर्य भगवान (Surya Bhagwan) और छठी मईया (Chhathi Maiya) की उपासना का पर्व है। छठ पूजा (Chhath Puja) के पीछे कई कहानियां और मान्यताएं प्रचलित हैं। तो चलिए जानते हैं इस व्रत के ऐतिहासिक और पौराणिक महत्व को।

राजा प्रियंवद दंपति को संतान प्राप्ति
हिंदू धर्म में प्रचलिच एक पौराणिक कथा के अनुसार, राजा प्रियंवद सबकुछ से धनी थे, मगर उनका कोई संतान नहीं था. एक बार महर्षि कश्यप ने पुत्र प्राप्ति के लिए राजा प्रियंवद को यज्ञ करने को कहा. महर्षि ने कहा था कि यज्ञ के पूर्णाहुति के लिए जो खीर बनेगी उसे अपनी पत्नी को खिलाने के लिए. राजा प्रियंवद ने ठीक उसी अनुसार सब कुछ किया और अपनी पत्नी मालिनी को यज्ञाहुति के लिए बनाई गई खीर दी।

हालांकि, ऐसा करने के बाद राजा प्रियंवद और मालिनी को पुत्र प्राप्ति का धन तो मिला, मगर वो बच्चा मरा हुआ पैदा लिया. इसके बाद राजा प्रियंवद पुत्र के शव को लेकर श्मशान घाट गये और पुत्र वियोग में अपने प्राण त्यागने की ठान ली. राजा के द्वारा ऐसा करते देख सृष्टि की मूल प्रवित्रि के छठे अंश से उत्तपन्न हुईं भगवान की मानस पुत्री देवसेना प्रकट हुई हैं।

उन्होंने राजा को प्राण त्यागने से रोका और पुत्र प्राप्ति के मार्ग बताये. देवसेना कहा कि उनकी पूजा करने से ही संतान कू प्राप्ति होगी. इसके बाद राजा प्रियंवद और रानी मालिनी ने देवी षष्टी का व्रत किया और इस तरह से उन्हें पुत्र रतन की प्राप्ति हुई है. इसी के बाद से ऐसा माना जाता है कि छठ पूजा मनाई जाती है।

जब दानवीर कर्ण को मिला भगवान सूर्य से वरदान
हिंदू धर्म में ही एक मान्यता ये भी है कि छठ पर्व की शुरुआत महाभारत काल में ही हुई है। ऐसा कहा जाता है कि सबसे पहले सूर्यपूत्र कर्ण ने माता को कलंक से मोक्ष दिलाने के लिए सूर्य भगवान की पूजा की थी।

ये सर्व विदित है कि कर्ण सूर्य भगान के परम शिष्य थे। दानवीर कर्म घंटों कमर भर पानी में खड़े होकर सूर्य भगवान को अर्ध्य दिया करते थे. यही वजह है कि आज भी लोग ये मानते हैं कि सूर्य की कृपा से ही कर्ण इतने महान योद्धा बने. तभी से छठ पूजा में पानी में खड़े होकर अर्ध्य देने की परंपरा शुरू हुई. छठ मनाने वालों में ऐसी मान्यता है कि छठ पूजा के दौरान पानी में खड़े होकर अर्ध्य देने से चर्म रोग ठीक हो जाते हैं।

जब माता सीता ने की भगवान सूर्य की पूजा
लोक कथाओं में ये भी बात सुनने को मिलती है कि माता सीता ने भी सूर्य देवता की पूजा की थी. ऐसा माना जाता है कि भगवान श्री राम और माता सीता जब 14 वर्ष वनवास में बीता कर अयोध्या लौटे थे, तब माता सीता और भगवान राम ने राज्य की स्थापना के दिन यानी कार्तिक शुक्ल षष्टी को उपवास रखा था और उस दिन सूर्य भगवान की अराधना की थी. इतना ही नहीं, कहा तो ये भी जाता है कि माता सीता ने महर्षि मुद्गल के कुटिया में रहकर लगातार छह दिनों तक सूर्य भगवान की उपासना की थी।