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Hindu New Year: संवत्सरारम्भ – ब्रह्मा जी द्वारा सृष्टि की रचना का दिन

संवत्सरारम्भ (Beginning of the year) (2 April 2022) के दिन करने योग्य धार्मिक कृति

कोई भी त्यौहार आता है तो उस त्योहार की विशेषता एवं उसकी पद्धति अनुसार हम उसे मनाते है । हिन्दू धर्म (Hindu Dharma) में बताए गए पारम्परिक कृति के अध्यात्मशास्त्र को समझ लेने से उसका महत्त्व हमें मान्य होता है । संवत्सरारम्भ (Hindu New Year) के दिन की जाने वाली धार्मिक कृति की जानकारी सनातन संस्था द्वारा संकलित इस लेख से समझ लेते हैं ।

अभ्यंग स्नान (मांगलिक स्नान)
चैत्र शुक्ल पक्ष प्रतिपदा के दिन प्रातः शीघ्र उठकर प्रथम अभ्यंग स्नान करते हैं । अभ्यंग स्नान के समय देश काल कथन करना होता है ।

बंदनवार लगाना
स्नानोपरांत आम के पत्तों का बंदनवार बनाकर, लाल पुष्पों के साथ प्रत्येक द्वार पर बांधते हैं; क्योंकि लाल रंग शुभदर्शक है ।

संवत्सर पूजा
प्रथम नित्यकर्म देव पूजा करते हैं । ‘वर्ष प्रतिपदा के दिन महाशांति करते हैं । शांति के प्रारंभ में ब्रह्मदेव की पूजा करते हैं; क्योंकि इस दिन ब्रह्मदेव ने विश्व की निर्मिति की थी । पूजा में उन्हें दौना (कटावदार तेज सुगंधवाला पत्ता) चढाते हैं । तदुपरांत होम, हवन एवं ब्राह्मणसंतर्पण करते हैं । फिर अनंत रूपों में अवतरित होने वाले विष्णु की पूजा करते हैं । ‘नमस्ते ब्रह्मरुपाय विष्णवे नमः ।’, इस मंत्र का उच्चारण कर उन्हें नमस्कार करते हैं एवं तत्पश्चात ब्राह्मणों को दक्षिणा देते हैं । संभव हो तो इतिहास, पुराण इत्यादि ग्रंथ ब्राह्मण को दान देते हैं । ‘ऐसा करने से सर्व पापों का नाश होता है, शांति मिलती है, दुर्घटना नहीं होती, आयु बढती है एवं धन-धान्य से समृद्धि होती है, ऐसे कहा गया है ।’  इस तिथि के वार `से संबंधित देवता की भी पूजा करते हैं ।

ब्रह्मध्वज खड़ी करना 
1. सूर्योदय के उपरांत तुरंत ही ब्रह्मध्वज खड़ी करना चाहिए । अपवादात्मक स्थिती में (उदा. तिथि क्षय) पंचांग देखकर ब्रह्मध्वज खड़ी करें ।
2. पीढ़े पर स्वास्तिक बना कर ब्रह्मध्वजा खडी करें । ब्रह्मध्वजा खड़ी करने के लिए हरा गीला 10 फुट से लम्बे बांस के ऊपर लाल या पीला रेशमी कपडा चुन्नट बना कर बांधें, साथ ही नीम की टहनियां, बताशे की माला तथा लाल फूलों की माला बांधें फिर तांबे के कलश पर कुमकुम की 5 रेखा बनाकर बांस की ऊपरी सिरे पर उल्टा रखें । इस प्रकार सजे हुए ब्रह्मध्वज को डोरी से बांध कर खड़ी करें। ब्रह्मध्वज घर के मुख्यद्वार के बाहर, देहली से संलग्न, भूमि पर दाईं ओर खड़ी करें । ध्वजा सीधे खडी न कर आगे की ओर कुछ झुकी हुई हो । ध्वजा के सम्मुख सुंदर रंगोली बनाएं ।
3.‘ ब्रह्मध्वजाय नमः ।’’ बोलकर इस धर्म ध्वजा की संकल्पपूर्वक पूजा की जाती है ।
4. सूर्यास्त के समय गुड का नैवेद्य दिखाकर धर्म ध्वजा उतारते हैं ।

दान
याचकों को अनेक प्रकार के दान देने चाहिए, उदा. प्याऊ बनाकर जलदान । इससे पितर संतुष्ट होते हैं । ‘धर्मदान’ सर्वश्रेष्ठ दान है, ऐसा शास्त्रों में बताया गया है । वर्तमान काल में धर्म शिक्षा देना, काल की आवश्यकता है ।

पंचांग श्रवण
‘इस दिन नव वर्ष का आरंभ होने के कारण ज्योतिष का पूजन कर उससे या ‘उपाध्याय से नए वर्ष का पंचांग अर्थात वर्षफल श्रवण करते हैं । इस पंचांग श्रवण का लाभ इस प्रकार बताया गया है।

तिथेश्च श्रीकरं प्रोक्तं वारादायुष्यवर्धनम् ।
नक्षत्राद्धरते पापं योगाद्रोगनिवारणम् ।।

करणाच्चिन्तितं कार्यं पञ्चाङ्गफलमुत्तमम् ।
एतेषां श्रवणान्नित्यं गङ्गास्नानफलं लभेत् ।।

अर्थ: तिथि के श्रवण से लक्ष्मी प्राप्त होती है, वारों के श्रवण से आयु बढती है, नक्षत्र श्रवण से पापों का` नाश होता है, योग श्रवण से रोग दूर होता है, करण श्रवण से निर्धारित कार्य साध्य होते हैं । ऐसा उत्तम फल है इस पंचांग श्रवण का । इसके नित्य श्रवण से गंगा स्नान का फल मिलता है ।’

नीम की पत्तियों का प्रसाद
न्य किसी भी पदार्थ की अपेक्षा नीम में प्रजापति तरंगें ग्रहण करने की क्षमता अधिक होने के कारण संवत्सरारम्भ के दिन नीम का प्रसाद खाया जाता है । यह प्रसाद नीम के पुष्प, कोमल पत्ते, चने की भीगी दाल अथवा भिगोए गए चने, शहद, जीरा एवं थोडी सी हींग एक साथ मिलाकर प्रसाद बनाएं एवं सभी को बांटें ।

भूमि जोतना
संवत्सरारंभ के दिन भूमि पर हल चलाना चाहिए । जोतने की क्रिया से नीचे की मिट्टी ऊपर आ जाती है । मिट्टी के सूक्ष्म कणों पर प्रजापति तरंगों का संस्कार होने से धरती की बीज अंकुरित करने की क्षमता अनेक गुना बढ जाती है । खेती के उपकरण एवं बैलों पर प्रजापति तरंगें उत्पन्न करने वाले अक्षत मंत्र सहित डाले । खेत में काम करने वाले लोगों को नए कपडे देने चाहिए । इस दिन खेत में काम करने वाले लोग एवं  बैलों के भोजन में पका हुआ कुम्हडा, मूंग की दाल, चावल, पूरन इत्यादि पदार्थ होने चाहिए ।

सुखदायक कृतियां
विविध प्रकार के मंगल गीत, वाद्य एवं पुण्य पुरुषों की कथा सुनते हुए यह दिन आनंदपूर्वक बिताएं । वर्तमान में त्योहार मनाना यानी मौज-मस्ती करने वाला दिन ऐसी संकल्पना निर्माण हुई है; हिन्दू धर्मशास्त्र अनुसार त्योहार अर्थात ‘अधिक चैतन्य प्रदान करने वाला दिन होता है । इसलिए त्योहार के दिन सात्त्विक भोजन, सात्त्विक वेष-भूषा तथा अन्य धार्मिक कृत्य इत्यादि करने के साथ सुखदायक कृत्य करने के लिए शास्त्र में बाताया गया है । त्योहार, धार्मिक विधि के दिन या संवत्सरारम्भ के शुभ दिन में नूतन अथवा रेशमी अलंकार धारण करने से देवता के आशीर्वाद प्राप्त होते है । वस्त्र में आकृष्ट तत्त्व दीर्घकाल तक रहता है एवं यह वस्त्र वर्ष भर परिधान करने से देवता तत्त्व का लाभ वर्ष भर होता है ।

संवत्सरारम्भ  के दिन की जाने वाली प्रार्थना
हे ईश्वर आज आपसे आने वाले शुभाशीर्वाद तथा ब्रह्मांड से आने वाली सात्त्विक तरंगों को अधिकतम ग्रहण कर लेना मेरे लिए संभव हो । मुझ में इन तरंगों को ग्रहण करने की क्षमता नहीं है । मैं आपकी चरणों में संपूर्ण रूप से शरणागत हूं । आप ही मुझे इन सात्त्विक तरंगों को ग्रहण करने की क्षमता दें, यही आपके चरणों में प्रार्थना है !