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त्रिदिवसीय पूर्वोत्तर परिसंवाद- 2021: पूर्वोत्तर की जनजातीय संस्कृति में राम कथा और कृष्ण कथा

नई दिल्ली: चाणक्य वार्ता द्वारा प्रतिवर्ष आयोजित होने वाले त्रिदिवसीय पूर्वोत्तर परिसंवाद- 2021 के दूसरे दिन का प्रारंभ अरुणाचल प्रदेश सत्र के साथ हुआ। इस वर्ष की थीम पूर्वोत्तर की जनजातीय संस्कृति में राम कथा और कृष्ण कथा रखी गई है। अरुणाचल प्रदेश सत्र में मुख्य अतिथि के रूप में अरुणाचल प्रदेश पूर्वी सीट से […]

नई दिल्ली: चाणक्य वार्ता द्वारा प्रतिवर्ष आयोजित होने वाले त्रिदिवसीय पूर्वोत्तर परिसंवाद- 2021 के दूसरे दिन का प्रारंभ अरुणाचल प्रदेश सत्र के साथ हुआ। इस वर्ष की थीम पूर्वोत्तर की जनजातीय संस्कृति में राम कथा और कृष्ण कथा रखी गई है। अरुणाचल प्रदेश सत्र में मुख्य अतिथि के रूप में अरुणाचल प्रदेश पूर्वी सीट से लोकसभा सांसद तापिर गावो ने भाग लिया। जबकि सत्र की अध्यक्षता दिल्ली विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग के प्रो. चंदन चौबे ने की।

सर्वप्रथम पूर्वोत्तर परिसंवाद के संयोजक डॉ. अमित जैन ने विषय प्रवर्तन और अतिथियों का स्वागत किया। इसके बाद बीनी यांगा शासकीय महिला महाविद्यालय, लेखी, अरुणाचल प्रदेश की सहायक आचार्या डॉ. सोनम वाङ्मू ने अपना विद्वतापूर्ण वक्तव्य देते हुए कहा कि अरूणाचल प्रदेश की संस्कृति अत्यंत समृद्ध है।यह भूमि प्राचीन काल से ही चार प्रमुख धर्मो से जुडी रही है जिनमें हिन्दू, बौद्ध, ईसाई एवं प्रकृति पूजक शामिल है।उन्होने कहा कि हमारे राज्य में राम और कृष्ण से जुडे अनेक प्रमाण मिलते है लेकिन इस विषय पर विस्तृत शोध की आवश्यकता है।देरा नातुन्ग शासकीय महाविद्यालय, अरुणाचल प्रदेश की सहायक आचार्या तुम्बम रीबा ‘लिली’ ने अपने संबोधन में कहा कि अरूणाचल में कभी धर्म को लेकर दंगे फसाद नही हुए यहां सभी मिल जुल कर रहते है। उन्होंने अपने शोधपूर्ण वक्तव्य में कहा कि अरूणाचल की रहने वाली रुक्मणी से श्रीकृष्ण जी ने विवाह किया था और समय समय पर वह यहां आते रहे उसी प्रकार अनिरुद्ध ने भी राजा बाणासुर की कन्या उषा से विवाह किया था इस प्रकार हमारा प्रदेश श्रीकृष्ण जी से पुराने समय से जुड़ा हुआ है।उन्होनें कहा कि अरूणाचल के जनजातीय समाज में हजारो साल से राम कथा की परम्परा चल रही है। प्रोफेसर चंदन चौबे ने अपने अध्यक्षीय भाषण में कहा कि पूर्वोत्तर की बातो को उनकी भाषा में ही हमे समझना होगा।उन्होने कहा कि अरूणाचल में संस्कृति के पद चिन्ह प्रत्येक स्थान पर दिखाई देते है।हिन्दी यहां की प्रमुख भाषा है जबकि यहां जय हिंद के नारे आम तौर पर सुनायी देते है।इसके बाद श्रोताओं ने पूर्वोत्तर से जुड़े रामकथा और कृष्णकथा से जुड़े प्रश्नों को उठाया जिसके उत्तर वक्ताओं द्वारा दिये गये।

अंत में चाणक्य वार्ता के पूर्वोत्तर जनसंपर्क अधिकारी आलोक सिंह ने धन्यवाद ज्ञापित किया।

द्वितीय दिन के दूसरे सत्र नागालैंड में अतिथियों का स्वागत असम व नागालैंड के राज्यपाल प्रो. जगदीश मुखी के सलाहकार अतुल सिंघल ने किया।श्री सिंहल ने अपने संबोधन में पूर्वोत्तर परिसंवाद के माध्यम से होने वाले विचार मंथन की सराहना की, अतुल सिंघल ने कहा कि नागा जनजीवन बहुत समृद्ध है जिस पर अध्ययन की आवश्यकता है।तदोपरांत इंडीजिनस कल्चरल सोसाइटी, दीमापुर, नागालैंण्ड के सचिव डॉ. वाई. एच. चिसी ने अपने संबोधन में वैदिक संस्कृति और नागा संस्कृति का तुलनात्मक रूप प्रस्तुत किया।उन्होने कहा कि नागाओं के रीति रिवाजों,त्यौहारों,परम्परागत जनजीवन में वैदिक संस्कृति की छाप है।मकोकचुंग, नागालैंड से सहायक हिन्दी अध्यापिका लानुइनला आओ ने भी अपना विद्वतापूर्ण वक्तव्य दिया।उन्होने नागालैंड की कछारी जनजाती में प्रचलित हिन्दू परम्पराओं की चर्चा की तथा आओ जनजाती के उद्धव पर भी प्रकाश डाला। इसके उपरांत अतिविशिष्ट अतिथि विद्या भारती जनजातीय शिक्षा समिति, नागालैंड के प्रांतीय संगठन मंत्री पंकज सिन्हा ने अपना ओजस्वी संबोधन दिया।उन्होने ” सनातन नागा परम्परा हमारी,बोलो नागा भूमि की जय” गीत सुनाकर नागाओं के जीवन पर विस्तृत प्रकाश डाला।सत्र के मुख्य अतिथि दीमापुर, नागालैंड के प्रसिद्ध कलाकार व थिएटर संगीतकार मोआ सुबांग आओ ने अपने संबोधन में पूर्वोत्तर राज्यों के ऐतिहासिक परिदृश्य एवं भगवान राम और कृष्ण की उपस्थिति का प्रमाणिक उल्लेख करके सभी को मनमोहित किया। पूर्वोत्तर परिसंवाद के प्रतिभागियों के प्रश्नों का वक्ताओं द्वारा समाधान देने के बाद सत्र के अध्यक्ष साहित्यकार एवं समाजसेवी जगदम्बा मल्ल ने अपने विचार रखे।श्री मल्ल ने नागालैंड की प्राचीन संस्कृति के साथ की गई छेडछाड पर अपनी चिंता व्यक्त की।उन्होने कहा कि यहां से राम कृष्ण की मान्यताओं को समाप्त करने के उद्देश्य से अनेक षड्यंत्र किये गये लेकिन अब नागा समाज ने स्वयं जागरूक होकर उन मान्यताओं को समाप्त करने का कार्य प्रारंभ किया है।अंत में सभी अतिथियों और श्रोताओं का चाणक्य वार्ता की और से पत्रिका के सलाहकार दीमापुर निवासी हुरई जेलियांग ने धन्यवाद किया।

इसके उपरांत तीसरा और दूसरे दिन का अंतिम सत्र मिजोरम राज्य पर आयोजित हुआ। मिजोरम सत्र में पूर्वोत्तर परिसंवाद के संयोजक डॉ. अमित जैन ने सभी का स्वागत किया। इस सत्र में आइजोल शासकीय महाविद्यालय, मिजोरम की सहायक आचार्य डॉ. रेबेका लल्हमंगई, वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. योगेन्द्र मिश्र ने अपने सारगर्भित विचार रखे। सत्र के मुख्य अतिथि मिजोरम के हिन्दी सेवी पद्मश्री सी. कामलोआ ने अपने संबोधन से सभी को लाभान्वित किया।उन्होने मिजोरम के जनजीवन का विस्तार से वर्णन किया।श्री कामलोआ ने कहा कि हमारे नागरिक राम राज्य के सिद्धांतों को जीते है।यहां आज भी घरो और गाडियों पर ताले नही लगाये जाते,सभी नागरिक आत्म निर्भर है,ईमानदारी की मिशाल मिजोरम में देखी जा सकती है।प्रतिभागियों से आये प्रश्नों के उत्तरों के बाद सत्र की अध्यक्षता कर रहे मिजोरम विश्वविद्यालय के हिन्दी विभागाध्यक्ष प्रो. सुशील कुमार शर्मा ने अपना सम्बोधन दिया।उन्होने कहा कि हिन्दी और मिजो भाषा को एक दूसरे के नजदीक लाने के लिए वे प्रयास कर रहे है।उन्होने मिजोरम निवासी रामथंगा का भी उल्लेख किया जिन्होने रामायण और भागवत का अनुवाद मिजो भाषा में करके एक ऐतिहासिक कार्य किया था।अंत में मिजोरम हिन्दी प्रशिक्षण महाविद्यालय, आईजोल, मिजोरम के सहायक आचार्य डॉ. अजय कुमार रंजीत ने सभी प्रतिभागियों का धन्यवाद दिया। कल पूर्वोत्तर परिसंवाद के तीसरे और अंतिम दिन मणिपुर व सिक्किम राज्य पर चर्चा होगी तथा पूर्वोत्तर परिसंवाद 2021 का समापन होगा।

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