लखनऊः उत्तर प्रदेश के 11 जिलों में हुए सीरो सर्वे में 22.1 फीसदी लोगों में कोरोना वायरस के प्रति एंटीबॉडी मिली है यानि 5 में 1 लोग एंटीबाॅडी हैं। जिन जिलों से नमूने एकत्र किए गए वे मेरठ, लखनऊ, कानपुर, वाराणसी, गोरखपुर, कौशाम्बी, प्रयागराज, मुरादाबाद, गाजियाबाद, बागपत और आगरा हैं। 22,268 घरों का सर्वे किया गया। हर जिले से खून के 1450 और कुल 16 हजार नमूने लिए गए थे। कोविड-19 के नमूने का परीक्षण लखनऊ के राम मनोहर लोहिया अस्पताल, गोमती नगर में किया गया। केजीएमयू के डाॅक्टरों ने बताया कि कोरोना संक्रमित लोगों में इस वायरस से लड़ने के लिए एंटीबॉडी विकसित हो जाती है। समुदाय में कोरोना संक्रमण और एंटीबॉडी का पता लगाने के लिए स्वास्थ्य विभाग ने सितंबर में यह सर्वे कराया था।
स्वास्थ्य विशेषज्ञों ने कहा कि सीरो सर्वेक्षण ने दो चीजों का संकेत दिया। केजीएमयू में पल्मोनरी क्रिटिकल केयर मेडिसिन विभाग के प्रमुख डॉ वेद प्रकाश ने कहा, ‘‘अगर सितंबर में 22.1 प्रतिशत लोगों का एंटीबॉडीज था, तो इसका मतलब आज की तुलना में प्रतिशत भी अधिक होगा।’’
आईएमए, लखनऊ के पूर्व अध्यक्ष डॉ पीके गुप्ता ने कहा, “यह रिपोर्ट राज्य में फैले समुदाय का संकेत है। अब, राज्य सरकार को संक्रमण की श्रृंखला को तोड़ने के लिए एक जन जागरूकता अभियान पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए। लोगों को कोविड-19 प्रोटोकॉल का सख्ती से पालन करना चाहिए, अपने चेहरे को मास्क के साथ कवर करना, सामाजिक दूरी बनाए रखना और नियमित अंतराल पर हाथ धोना चाहिए।’’
डॉ गुप्ता ने कहा कि राज्य सरकार को चाहिए कि वह निजी प्रयोगशालाओं में कोरोना के परीक्षणों को करवाए ताकि ज्यादा से ज्यादा जांच हो सके। उन्होंने कहा कि नमूना परीक्षणों में वृद्धि यह सुनिश्चित करेगी कि कोविड-19 के लिए सकारात्मक परीक्षण करने वाले लोग तुरंत अलगाव में जाएंगे या अस्पताल में भर्ती होंगे। यह शेष आबादी के बीच संक्रमण के प्रसार की जांच करेगा।
डॉ एके सिंह ने कहा कि सीरो-सर्वे के आंकड़ों ने अनुमान लगाया है कि उत्तर प्रदेश की 230 मिलियन आबादी में से 50 मिलियन लोग वायरस के संपर्क में आ सकते हैं और सितंबर तक एंटीबॉडी के वाहक बन सकते हैं। उन्होंने कहा कि वायरस के संपर्क में आने वाले लोगों की संख्या नवंबर तक कई गुना बढ़ गई होगी। उन्होंने कहा कि राज्य सरकार ने नमूना परीक्षणों को बढ़ाने और पूरे राज्य में एक जन जागरूकता अभियान शुरू करने का सही निर्णय लिया है।
गोरखपुर के बाबा राघव दास मेडिकल कॉलेज में माइक्रोबायोलॉजी विभाग के प्रमुख डॉ अमरेश सिंह ने कहा कि संख्याओं से पता चलता है कि संक्रमण के बाद भी, रोगी या कमजोर प्रतिरक्षा प्रणाली के कारण बड़ी आबादी में एंटीबॉडी विकसित नहीं हो सकती हैं। उन्होंने कहा कि संक्रमण का पता लगाने के लिए नियमित फौलोअप की आवश्यकता थी।
एंटीबॉडी रोगजनकों से लड़ने के लिए शरीर द्वारा उत्पादित प्रतिरक्षा अणु हैं। रक्त में एंटीबॉडी की उपस्थिति आमतौर पर बताती है कि वायरस से संक्रमित लोग कुछ अवधि के लिए प्रतिरक्षा प्राप्त कर सकते हैं। नवीनतम अध्ययनों से पता चलता है कि एंटीबॉडी टिकाऊ नहीं हैं और तीन से चार महीनों के भीतर एंटीबॉडी खत्म होने लगती है।